नेपाल का राजनीतिक इतिहास: एक विस्तृत अवलोकन

    नेपाल का राजनीतिक इतिहास सदियों पुरानी और अत्यंत जटिल घटनाओं का एक ताना-बाना है। यह केवल राजाओं और शासकों की कहानी नहीं है, बल्कि यह उन लोगों के संघर्षों, क्रांतियों और आकांक्षाओं का भी प्रतिबिंब है जिन्होंने इस हिमालयी राष्ट्र को आकार दिया है। भारत और चीन जैसे दो विशाल पड़ोसियों के बीच स्थित नेपाल ने हमेशा एक अनूठी विदेश नीति और आंतरिक राजनीतिक गतिशीलता बनाए रखी है। इस लेख में, हम नेपाल के राजनीतिक इतिहास के प्रमुख चरणों पर एक नज़र डालेंगे, जिसमें राजशाही के उदय से लेकर वर्तमान संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य तक की यात्रा शामिल है।

    प्रारंभिक काल और एकीकरण

    नेपाल का एकीकरण 18वीं शताब्दी के मध्य में पृथ्वी नारायण शाह के नेतृत्व में शुरू हुआ। वह गोरखा राज्य के शासक थे और उन्होंने विभिन्न छोटे-छोटे राज्यों को जीतकर एक एकीकृत नेपाल का निर्माण किया। यह एकीकरण कोई आसान काम नहीं था, इसमें वर्षों के युद्ध और कूटनीतिक चालें शामिल थीं। पृथ्वी नारायण शाह को नेपाल के राष्ट्रपिता के रूप में जाना जाता है, और उनके द्वारा स्थापित गोरखा शासन ने देश की राजनीतिक संरचना की नींव रखी। उनके शासनकाल के बाद, शाह वंश ने नेपाल पर लंबे समय तक शासन किया। इस प्रारंभिक काल में, राजनीतिक शक्ति काफी हद तक राजशाही और दरबार के इर्द-गिर्द केंद्रित थी। हालांकि, धीरे-धीरे दरबार के भीतर सत्ता संघर्ष और बाहरी शक्तियों का प्रभाव भी बढ़ने लगा, जिसने भविष्य की राजनीतिक उथल-पुथल की नींव रखी। यह समझना महत्वपूर्ण है कि उस समय की राजनीतिक व्यवस्था आज के आधुनिक लोकतंत्र से बहुत अलग थी, जहाँ राजा ही सर्वेसर्वा होता था और निर्णय लेने की शक्ति उसी के हाथ में निहित होती थी।

    राणा शासन का उदय और पतन

    19वीं शताब्दी के मध्य में, जंग बहादुर राणा ने कोत (रक्तपात) नामक एक खूनी तख्तापलट के माध्यम से सत्ता पर कब्जा कर लिया और राणा शासन की स्थापना की। इस शासन के तहत, प्रधानमंत्री का पद वंशानुगत हो गया और वास्तविक शक्ति प्रधानमंत्री के हाथों में आ गई, जबकि राजा केवल एक संवैधानिक प्रमुख बनकर रह गया। राणा शासन लगभग 104 वर्षों तक चला और यह नेपाल के इतिहास का एक महत्वपूर्ण और विवादास्पद दौर था। इस अवधि में, नेपाल बाहरी दुनिया से काफी हद तक अलग-थलग रहा, और आंतरिक विकास धीमा रहा। राणा शासकों ने अपनी शक्ति को मजबूत करने और अपनी संपत्ति बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया, जिससे आम जनता की स्थिति दयनीय बनी रही। हालांकि, इस अवधि के अंत तक, बाहरी दुनिया में हो रहे राजनीतिक परिवर्तनों और नेपाल के भीतर बढ़ती असंतोष ने राणा शासन के पतन का मार्ग प्रशस्त किया। विभिन्न राजनीतिक दलों और आंदोलनों ने राणा शासन के खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी, जिससे अंततः 1951 में राणा शासन का अंत हुआ। यह नेपाल के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने देश को एक नए युग में प्रवेश करने का अवसर दिया।

    लोकतंत्र की ओर पहला कदम और उसके बाद

    1951 में राणा शासन के अंत के बाद, नेपाल ने संवैधानिक राजशाही की ओर पहला कदम बढ़ाया। त्रिभुवन शाह के नेतृत्व में, एक अंतरिम सरकार का गठन किया गया और देश में लोकतंत्र लाने के प्रयास शुरू हुए। 1959 में, नेपाल का पहला लोकतांत्रिक संविधान लागू हुआ और चुनाव हुए, जिसमें बी.पी. कोइराला के नेतृत्व में नेपाली कांग्रेस पार्टी विजयी हुई। यह नेपाल के इतिहास में एक आशावादी अध्याय था, लेकिन यह क्षणिक साबित हुआ। 1960 में, राजा महेंद्र ने लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को भंग कर दिया और सत्ता अपने हाथों में ले ली, जिससे पंचाायती राज व्यवस्था की शुरुआत हुई। पंचाायती राज एकदलीय व्यवस्था थी जिसमें कोई राजनीतिक दल नहीं होता था और सभी निर्णय राजा द्वारा नियुक्त निकायों के माध्यम से लिए जाते थे। यह व्यवस्था 1990 तक चली और इस दौरान नेपाल में राजनीतिक स्वतंत्रता का अभाव रहा। राजाओं की सत्ता का केंद्रीकरण और जनता की आवाज को दबाने के प्रयासों ने लगातार असंतोष को जन्म दिया। हालांकि, इस दमनकारी माहौल के बावजूद, राजनीतिक कार्यकर्ता और नागरिक समाज के लोग लोकतंत्र की बहाली के लिए संघर्ष करते रहे।

    जन-आंदोलन 1990 और संवैधानिक राजशाही

    1990 में, नेपाल में एक व्यापक जन-आंदोलन हुआ, जिसने पंचाायती राज व्यवस्था को समाप्त कर दिया और संवैधानिक राजशाही की पुनर्स्थापना की। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप, एक नया संविधान लागू हुआ और बहुदलीय लोकतंत्र की स्थापना हुई। नेपाल में कई राजनीतिक दलों का उदय हुआ, और चुनावों के माध्यम से सरकारें बनने लगीं। यह अवधि नेपाल के लिए एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतीक थी, लेकिन यह चुनौतियों से रहित नहीं थी। राजनीतिक अस्थिरता, गठबंधन सरकारों का टूटना और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं बनी रहीं। इसी बीच, एक और महत्वपूर्ण घटनाक्रम हुआ - माओवादी विद्रोह की शुरुआत। माओवादी, जो एक कम्युनिस्ट पार्टी थी, ने मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष छेड़ दिया, जिसका उद्देश्य एक कम्युनिस्ट गणराज्य की स्थापना करना था। यह विद्रोह धीरे-धीरे पूरे देश में फैल गया और इसने नेपाल की राजनीति को और अधिक जटिल बना दिया। इस विद्रोह ने न केवल देश की सुरक्षा को खतरे में डाला, बल्कि इसने आर्थिक विकास को भी बाधित किया और लोगों के जीवन को अस्त-व्यस्त कर दिया।

    माओवादी विद्रोह और उसके परिणाम

    माओवादी विद्रोह 1996 में शुरू हुआ और लगभग एक दशक तक चला। इस संघर्ष ने नेपाल को गंभीर संकट में डाल दिया। देश में कानून व्यवस्था चरमरा गई, अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई और हजारों लोग मारे गए। माओवादियों का मुख्य लक्ष्य राजशाही को उखाड़ फेंकना और एक गणतंत्र की स्थापना करना था। इस दौरान, नेपाल की सेना और माओवादी लड़ाकों के बीच भीषण लड़ाई हुई। राजा ज्ञानेन्द्र ने 2001 में शाही परिवार की सामूहिक हत्या के बाद सत्ता संभाली और 2005 में उन्होंने सीधे शासन का नियंत्रण अपने हाथों में ले लिया, जिससे देश में आपातकाल लागू हो गया। राजा के इस कदम ने माओवादियों और अन्य लोकतांत्रिक ताकतों को एक साथ आने के लिए मजबूर किया। 2006 में, एक बार फिर देश में एक विशाल जन-आंदोलन हुआ, जिसे 'द्वितीय जनआंदोलन' के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन ने राजा ज्ञानेन्द्र को सत्ता छोड़ने और संसद को बहाल करने के लिए मजबूर किया। इस आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि माओवादी विद्रोह का शांतिपूर्ण समाधान था। माओवादियों ने हथियार डाल दिए और राजनीतिक प्रक्रिया में शामिल होने के लिए सहमत हो गए। यह नेपाल के इतिहास में एक अभूतपूर्व क्षण था, जिसने देश को गृहयुद्ध से बाहर निकाला और एक नए भविष्य की ओर बढ़ने का मार्ग प्रशस्त किया।

    संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना

    2006 के जन-आंदोलन की सफलता के बाद, नेपाल ने गणतंत्र की दिशा में एक बड़ा कदम उठाया। 2007 में, एक अंतरिम संविधान लागू किया गया और 2008 में, संविधान सभा के चुनावों के माध्यम से, नेपाल को संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया। इसके साथ ही, सदियों पुरानी राजशाही को समाप्त कर दिया गया। यह नेपाल के राजनीतिक इतिहास में एक ऐतिहासिक परिवर्तन था। हालांकि, गणतंत्र की स्थापना के बाद भी चुनौतियाँ कम नहीं हुईं। एक नया संविधान बनाना एक लंबी और जटिल प्रक्रिया साबित हुई, जिसमें विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच मतभेद थे। अंततः, 2015 में, नेपाल को अपना नया संविधान मिला, जिसने देश को सात प्रांतों में विभाजित किया और शक्तियों के विकेंद्रीकरण की व्यवस्था की। वर्तमान में, नेपाल एक संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में अपनी यात्रा जारी रखे हुए है, जिसका उद्देश्य समावेशिता, विकास और स्थिरता प्राप्त करना है। राजनीतिक परिदृश्य अभी भी गतिशील है, और विभिन्न दलों के बीच सत्ता के लिए प्रतिस्पर्धा जारी है। देश को आर्थिक विकास, सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय एकता को मजबूत करने जैसी कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

    निष्कर्ष

    नेपाल का राजनीतिक इतिहास उतार-चढ़ाव, संघर्षों और परिवर्तनों से भरा रहा है। राजशाही के प्रभुत्व से लेकर लोकतंत्र और फिर गणतंत्र की स्थापना तक की नेपाल की यात्रा असाधारण रही है। पृथ्वी नारायण शाह के एकीकरण के प्रयासों से लेकर राणा शासन की तानाशाही, पंचाायती राज की निरंकुशता, संवैधानिक राजशाही के प्रयोग, माओवादी विद्रोह के संकट और अंततः संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना तक, हर चरण ने देश के वर्तमान स्वरूप को आकार दिया है। नेपाल ने बार-बार यह साबित किया है कि उसके लोग शांति, लोकतंत्र और प्रगति के लिए प्रतिबद्ध हैं। भविष्य में भी, नेपाल को अपनी राजनीतिक स्थिरता बनाए रखने, आर्थिक विकास को गति देने और सभी नागरिकों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करने की दिशा में निरंतर प्रयास करने होंगे। यह देश का राजनीतिक इतिहास हमें सिखाता है कि परिवर्तन अवश्यंभावी है, और लोगों की सामूहिक इच्छाशक्ति किसी भी बाधा को पार कर सकती है।